मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, सभी पक्षों से मांगे नाम

नईदिल्ली | अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद मध्यस्थता के लिए नाम सुझाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा ने इस मामले में कोई मध्यस्थ रखने का विरोध किया, तो वहीं निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए राजी है. मुस्लिम पक्षकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ही तय करे कि बातचीत कैसे हो?
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने साफ कहा कि कोर्ट अयोध्या जमीन विवाद और इसके प्रभाव को गंभीरता से समझता है और जल्दी फैसला सुनाना चाहता है. बेंच ने आगे कहा कि अगर पार्टियां मध्यस्थों का नाम सुझाना चाहती हैं तो आज दे सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये भावनाओं और विश्वास से जुड़ा मामला है. फैसले का असर जनता की भावना और राजनीति पर पड़ सकता है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एए बोबडे ने कहा कि इस मामले में सिर्फ एक मध्यस्थ नहीं हो सकता, इसके लिए एक पैनल होनी चाहिए. हालांकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ये सवाल किया कि आखिर मध्यस्थता कैसे संभव है. उन्होंने कहा, शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से संकल्प की वांछनीयता एक आदर्श स्थिति है, लेकिन असल सवाल यही है कि यह किया जाना कैसे संभव है…?
मध्यस्थता हुई तो क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मानना है कि अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसके घटनाक्रमों पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह कोई गैग ऑर्डर (न बोलने देने का आदेश) नहीं है बल्कि सुझाव है कि रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए.
अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा, बाबर था या नहीं, वो राजा था या नहीं, वहां मंदिर था या मस्जिद, ये सब इतिहास की बातें हैं. कोई भी उस जगह बने और बिगड़े निर्माण या मंदिर-मस्जिद और इतिहास को पलट नहीं सकता. जो पहले हुआ, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं. अब विवाद क्या है, हम उस पर बात कर रहे हैं. इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले.

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